यह चीनी महिला खुद को कहती है जीसस का अवतार, भारत में बढ़ रहे उसके भक्त

नागालैंड में इधर चाइनीज फीमेल जीसस को लेकर खूब बवाल हो रहा है। वहां की बपतिस्त चर्च काउंसिल ने सभी बपतिस्त संगठनों को एक चिट्ठी लिखकर इस फीमेल जीसस के बारे में आगाह किया है। ये असल में चीन का एक संप्रदाय है, जो दावा करता है कि ईसा मसीह दोबारा एक महिला के रूप में अवतार ले चुके हैं। चीन ने खुद ही अपने इस संप्रदाय को बैन कर रखा है, लेकिन अब ये नगालैंड में अपनी जड़ें जमा रहा हैं। जानिए क्या है ये संप्रदाय और क्या मकसद है।

This Chinese woman calls herself an avatar of Jesus, her devotees growing up in India

Here in Nagaland there is a lot of ruckus about the Chinese female Jesus. The Baptist Church Council has written a letter to all baptized organizations to warn about this female Jesus. It is actually a sect of China, which claims that Jesus Christ has reincarnated as a woman. China itself has banned this sect, but now it is establishing its roots in Nagaland. Know what is this sect and what is the purpose.

चीन का एक संप्रदाय खुद को चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड कहता है। साल 1991 में जन्मे और फैले इस पंथ के मानने वाले दावा करने लगे कि जीसस का महिला के रूप में दोबारा जन्म हो चुका है। उनके मुताबिक यांग जियांगबिन नाम की चीनी महिला के रूप में जीसस लौटे। जल्दी ही इस नए पंथ को मानने वाले तेजी से बढ़े और चीन की सरकार घबरा गई।
उसने साल 1995 में चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड नाम के इस पंथ को बैन कर दिया। यहां तक कि अपने सीक्रेटिव तौर-तरीकों और अजीबोगरीब बातों के कारण इसे आतंकी संस्थान तक कह दिया गया। बदले में पंथ के लोगों ने शिकायत शुरू कर दी कि चीनी सरकार उन्हें दबाने की कोशिश कर रही है। बैन होने के बाद भी दबे-छिपे इस नए धर्म को मानने वाले बढ़ते ही गए। यहां तक कि अब भी चीन में इसे मानने वाले 3 से 4 मिलियन लोग हैं।

जिस चीनी महिला को नए जीसस के रूप में सामने लाया गया, उसका पूरा नाम यांग जियांगबिन था। साल 1973 में जन्मी यांग को उसकी बातों के कारण चर्च को मानने वाले बहुत से लोग प्रभावित थे। धीरे-धीरे उसके संपर्क में कई नामी-गिरामी लोग आए, जो यांग से उतने ही प्रभावित हुए। उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया कि यांग खुद जीसस का अवतार है। इसके बाद से यांग को स्त्रीलिंग की बजाए पुरुष के तौर पर बुलाया जाने लगा।

साल 1995 में चीनी की सरकार ने इस पंथ को Ûपम रपंव यानी शैतानी पंथ कहा और इसे मानने वालों को जेल में डालने लगी। ब्ीपदमेम ब्तपउपदंस ब्वकम की धारा 300 के तहत ये दमन शुरू हुआ।

इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम के मुताबिक तब से लेकर साल 2018 तक चीन में इस धर्म को मानने वाले 11 हजार से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया। यहां तक कि कस्टडी के दौरान मिली प्रताड़ना से बहुतों की मौत हो गई और बहुत से लोग लापता हो गए।

वैसे खुद इस फीमेल जीसस और उसके पंथ के बारे में काफी सारी बातें कही जाती हैं। जैसे ये पंथ अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए हिंसा का सहारा लेता था। यहां तक कि चीन ने जब ये पंथ फैल रहा था, तब वो लोगों का अपहरण करके उन्हें अपना धर्म अपनाने के बाध्य करने लगा। साल 2014 में, बैन के बाद भी इस धर्म को मानने वालों ने एक रेस्त्रां की महिला कर्मचारी की बेरहमी से हत्या कर दी थी। वजह केवल इतनी थी कि धर्म प्रचार के लिए नंबर मांगने पर महिला कर्मचारी ने अपना नंबर देने से इनकार कर दिया था। इस महिला की रेस्त्रां में ही मौत हो गई। बाद मेंये घटना सामने आने पर इंटरनेशनल मीडिया में इस धर्म का नाम दोबारा सुर्खियों में आया था।

महिला जीसस से नाम से ख्यात यांग फिलहाल अमेरिका की शरण में है और न्यूयॉर्क से अपना धर्म संचालन कर रही हैं। बीच-बीच में इस महिला के बारे में कई बातें आती रहती हैं, जैसे वो मानसिक तौर पर बीमार है और खुद को न मानने वालों को बुरी तरह से प्रताड़ित करती है। अब इसी पंथ को मानने वाले नगालैंड में भी फैल रहे हैं। इसे ही लेकर एनबीसीसी ने सबको आगाह किया है कि वे सोशल मीडिया पर एक्टिव इस ग्रुप के लोगों की बातों पर प्रतिक्रिया न करें और न ही उनसे प्रभावित हों।

वैसे ये धर्म जो भी हो, चीन में धर्म को लेकर प्रताड़ना नई बात नहीं। उइगर मुसलमान फिलहाल इसी वजह से चीन के निशाने पर हैं। उनके अलावा फालुन गांग नामक एक और समुदाय भी चीन में बैन हो चुका है। फालुन गोंग नाम के धार्मिक समुदाय को चीन की सरकार ने शैतानी धर्म नाम दिया और उसे मानने वालों को जेल में तब तक टॉर्चर करने लगी, जब तक वे इसे मानना न छोड़ दें।

इस समुदाय को मानने वालों की शुरुआत साल 1992 में हुई। दरअसल ये एक तरह की मेडिटेशन प्रैक्टिस है जो चीन के ही पुराने कल्चर ुपहवदह पर आधारित है। इसमें सीधे बैठकर खास तरीके से सांस ली जाती है और इससे शरीर और मन की बीमारियों को दूर करने का दावा किया जाता है। आध्यात्मिक गुरु ली होगंजी ने इसकी शुरुआत की। मेडिटेशन की ये पद्धति जल्द ही पूरे चीन में लोकप्रिय होने लगी। इसकी ख्याति का अंदाजा इस बात से लग सकता है कि पेरिस में चीन की एंबेसी ने इस पद्धति के मानने वालों को बुलाया ताकि वे फ्रांस में बसे चीनियों को भी ये सिखा सकें। खुद चीन की सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक मेडिटेशन के इस तरीके से सरकार के हेल्थ पर खर्च होने वाले अरबों रुपए बच सके।

हालांकि बाद में इस समुदाय की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर सरकारी मीडिया ने दावा किया कि इस समुदाय के लोग एक-दूसरे को या खुद को ही टॉर्चर करते हैं और इनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। सरकार इस कम्युनिटी के लोगों को घर से पकड़-पकड़कर उन्हें लेबर कैंप भेजने लगी। बहुत से लोगों को पागलखाने भेज दिया गया। अब भी चीनी मीडिया या इंटरनेट पर गोंग समुदाय के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। ये वहां के सबसे सेंसर्ड टॉपिक में से एक है। अगर चीन का कोई निवासी इस बारे में कुछ खोजने या इस पर बात करने की कोशिश करे तो उसे तुरंत देश के खतरा बताते हुए लेबर कैंप भेज दिया जाता है।

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